ग्राउंड रिपोर्ट
– फोटो : Amar Ujala
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मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु और गुरुग्राम की तरह पुणे भी नौकरी पेशा युवाओं का पसंदीदा शहर है। लोग अलग-अलग जगह से नौकरी करने आए और फिर यहीं के होकर रह गए। स्थानीय लोगों से लेकर बाहर से आकर यहां स्थाई रूप से रह रहे लोगों की लोकसभा चुनाव में अलग तरह की ही मांग और मुद्दे हैं। लोगों का कहना है देश के विकास के लिए बेहद जरूरी है कि उनकी छोटी-छोटी जरूरतों का पूरा होना। लेकिन यह जरूरत जब स्थानीय स्तर पर नहीं पूरी होती है, तो उनको देश की राजनीति में हिस्सेदारी लेने वाले नेताओं के दरवाजे पर दस्तक देनी पड़ती है। अमर उजाला डॉट कॉम ने पुणे के ऐसे ही नौकरी पेशा युवाओं से बातचीत की और जाना कि क्या हैं लोकसभा के चुनावों में उनके अपने मुद्दे?
पुणे में रह रहे दीनबंधु वर्मा बैंक ऑफ न्यूयॉर्क में वाइस प्रेसिडेंट हैं। वह कहते हैं कि देश तरक्की कर रहा है यह हमारे सबके लिए बहुत गर्व करने की बात है। हम जिन सांसदों को चुनकर अपने देश की दशा और दिशा तय करने के लिए संसद में भेजते हैं, उनसे हमें उन्हीं नीति और रणनीतियों की अपेक्षा रहती है। लेकिन क्या करें, पुणे जैसे शहर में बस रहे बाहरी इलाकों में पानी का जो संकट है, वह हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या है। अब पानी जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए स्थानीय स्तर पर ही योजनाएं बननी चाहिए। लेकिन हमें मजबूर होकर दिल्ली में चुनकर जाने वाले नेताओ के सामने गुहार लगानी पड़ रही है। वह कहते हैं कि पुणे जैसे शहर में दुनिया की बड़ी बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाए नहीं मिल पा रही हैं। हमारे लिए चुनाव में यही सबसे बड़ा और प्रमुख मुद्दा है।
पुणे के नैनेश शिलेनकर कहते हैं कि वह जब स्कूल में पढ़ते थे, तो कोई कभी किसी का भी टिफिन निकालकर खा लेते थे। कोई किसी की जाति और धर्म के बारे में नहीं पूछता था। लेकिन अब हमें जातियों और धर्म में जकड़ कर रख दिया गया। वह कहते हैं कि जाति धर्म में बांटने और बंटवाने वालों से सबसे ज्यादा बचने की जरूरत है। जिस दौर में हमें आगे बढ़ाना है इस दौर में हम जातियों में बंट रहे हैं। रही बात लोकसभा चुनाव में मुद्दों की, तो हमारे इलाके में ट्रैफिक जाम से लेकर सड़क और पानी की दिक्कतें बनी हई हैं। अब सवाल ऐसे में यही उठता है कि लोग लोकसभा जैसे चुनावों में इन छोटी-छोटी समस्याओं के लिए सांसद चुने का निर्णय लेना पड़ रहा है।
पुणे में आईटी सेक्टर में काम करने वाले उड़ीसा के श्याम रोजगार के सीमित संसाधनों और सीमित शहरों पर नाराज हैं। वह कहते हैं कि अगर उनको नौकरी उनके प्रदेश उड़ीसा में ही मिल जाती, तो वह अपना राज्य छोड़कर पुणे में नौकरी करने क्यों आते हैं। इसलिए सरकारों को अपने देश के युवाओं की क्षमताओं को पहचानते हुए आईटी सेक्टर जैसे बड़े हब सिर्फ चुनिंदा शहरों को छोड़कर देश के हर राज्य में डेवलप करवाने चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। नतीजा होता है कि पुणे जैसे शहर में बेतरतीब ट्रैफिक बढ़ता है और मूलभूत सुविधाओं के लिए लोगों को दिक्कत आती है। वह कहते हैं कि उनका वोट उस नेता और राजनीतिक दल को जाएगा, जो इन समस्याओं पर फोकस करेगा। हालांकि उनकी नाराजगी इस बात से है कि कोई भी राजनीतिक दल अपने घोषमा पत्र में प्रमुखता से जगह नहीं देता है।
पुणे के रहने वाले निलेश कहते हैं कि पुणे को अभी बहुत ज्यादा विकास की आवश्यकता है। यहां के पिंपरी चिंचवड़ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का जो इंफ्रास्ट्रक्चर है, वह बहुत अच्छा है। लेकिन जरूरत है उसको सही तरीके से लागू करने की। जो इंडस्ट्रियल इलाका तय है वहां पर इंडस्ट्रीज को बेहतर सुविधाओं के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए। जो इलाका रिहायशी तौर पर डेवलप किया जाना है, वहां पर उस हिसाब से सुविधा दी जानी चाहिए और यह सब काम स्थानीय सांसद की जिम्मेदारी होती है। लेकिन स्थानीय सांसद संभवतया इस दिशा में उस तरह से नहीं सोचते हैं। तभी तो इस इलाके में अभी बहुत विकास की जरूरत बनी हुई है। यहां के रहने वाले संहर्ष कहते हैं कि हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के नजरिए से हमारे मुद्दे बहुत छोटे हों। लेकिन एक एक व्यक्ति के लिए ट्रैफिक में फंसना, बदहाल सड़क पर चलना और पुणे जैसे बड़े शहर में पानी के लिए लाइन लगाना देश के प्रमुख मुद्दों में शामिल होना चाहिए।
पुणे में आईटी इंडस्ट्री में काम करने वाली भाव्या कहती हैं कि देश महिलाओं को आगे बढ़ाए जाने की बात की जा रही है। यह बहुत अच्छा है। लेकिन केंद्र सरकार की मॉनिटरिंग इस पर जरूर होनी चाहिए कि क्या महिलाओं को सिर्फ सरकारी संस्थाओं में ही सुविधाए मिल रही है या प्राइवेट में भी उनको लागू किया जा रहा है। भाव्या कहती हैं कि मातृत्व अवकाश के लिए मिलने वाली छुट्टियों पर भी केंद्र सरकार की निगाहें होनी चाहिए। क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में मातृत्व अवकाश के बाद मिलने वाली सहूलियतें खासतौर से वर्क फ्रॉम होम जैसी सुविधाओं में प्राइवेट कंपनियां मनमानी करती हैं। इसके अलावा स्थानीय सांसद से लेकर राज्य और केंद्र सरकारों को मिलावट करने वालों पर कड़ी सख्ती करनी चाहिए। उनका कहना है कि हर घर से जुड़ा हुआ मुद्दा मिलावट का है। लेकिन पार्टियों के घोषणा पत्र में यह महत्वपूर्ण मुद्दे होते ही नहीं हैं।
श्रुति कहती है कि लोगों को वोट जरूर देना चाहिए। उनका तर्क है कि जब आप वोट देंगे, तो आप मिली जुली सरकार की बजाय आप स्पष्ट जनादेश वाली सरकार बनाएंगे। जब आप स्पष्ट जनादेश की सरकार बनाते हैं तो वह सरकार अगले पांच सालों तक आपके हित की योजनाएं बनाने में और देश को आगे बढ़ाने के लिए काम करती हैं। और जब गठबंधन की सरकार होती है तो तो वह न तो सही निर्णय ले पाती है और न ही कोई महत्वपूर्ण योजनाओं को अमली जामा पहना पाती है। इसलिए बेहतर है कि लोग बढ़ चढ़कर वोट करें। इसके अलावा मैं वोट उस पार्टी और प्रत्याशी को दूंगी जो भ्रष्टाचार में संलिप्त नहीं है। इसके अलावा बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और रोजगार के साथ-साथ युवाओं को आगे लेकर चलेगा वोट उसी को मिलेगा। महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों में हुई टूट को लेकर श्रुति रहती है कि मेरा मानना है कि मतदान इतना होना चाहिए कि पूर्ण बहुमत की सरकार हो। ताकि सियासत में इस वक्त जो हो हुआ वह न हो।
पुणे की पूजा बिष्ट कहती हैं कि नेता और राजनीतिक दल वायदे तो बहुत करते हैं, लेकिन उन पर अमल होता ही नहीं है। लेकिन सरकारों को रोजगार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए। यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा भ्रष्टाचार बहुत बड़ा मुद्दा है। यह सीधे तौर पर तो नहीं दिखता है लेकिन हर व्यक्ति इससे रूबरू होता है। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अगर हम टैक्स देते हैं, तो हमें सुविधाएं भी मिलनी चाहिए। पूजा के मुताबिक यही वह सब मुद्दे हैं, जिसके आधार पर वोट करेंगी। हालांकि उनको शिकायत इस बात की है कि चुनाव में ही नेता मिलते हैं। इसलिए अपने मुद्दों को लेकर वह सीधे तौर पर नेता से रूबरू नहीं हो पाती हैं।