Pokhran Nuclear Test Anniversary Why Its Important For India Security And Effect On Geopolitics Atal Bihari Va – Amar Ujala Hindi News Live


pokhran nuclear test anniversary why its important for india security and effect on geopolitics atal bihari va

पोखरण परीक्षण के दौरान की तस्वीर
– फोटो : पीटीआई

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पोखरण परमाणु परीक्षण की आज 26वीं वर्षगांठ है। आज से 26 साल पहले 11 मई 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राजस्थान को पोखरण में परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों के साथ ही भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई। आज भारत के पास पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली अग्नि बैलिस्टिक मिसाइल है और साथ ही तीन हजार किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली के-4 पनडुब्बी आधारित बैलिस्टिक मिसाइल हैं, जिनकी जद में पूरा चीन और पाकिस्तान आता है। परमाणु शक्ति संपन्न होने के बाद ही भारत वैश्विक स्तर पर एक सैन्य और कूटनीतिक ताकत बनकर उभरा। 

भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के पूर्व निदेशक और महान वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोदकर ने कहा था कि पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया को भारत की अहमियत का अहसास हुआ और भारत की तकनीकी काबिलियत से भी दुनिया हैरान रह गई थी। डॉ. काकोदकर ने कहा कि देश की पहले जो स्थिति थी और अब जो स्थिति है, उसमें परमाणु शक्ति संपन्न होने के बाद एक बड़ा बदलाव आया है। भू-राजनीति के संदर्भ में भी भारत को देखने का दुनिया का नजरिया बदला है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का मानना था कि ताकत से ही सम्मान मिलता है और आज जब भारत दुनिया के पटल पर एक प्रमुख शक्ति बनकर उभरा है तो उससे सहज ही पूर्व राष्ट्रपति कलाम की बात सही साबित हो जाती है। 

चीन और पाकिस्तान की चुनौती लगातार बढ़ रही

दूसरे परमाणु परीक्षण के दो दशकों से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन अभी भी भारत के सामने चीन और पाकिस्तान की चुनौती है। चीन के साथ तो भारत के रिश्ते इस कदर बिगड़ चुके हैं कि दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर आमने-सामने हैं और दोनों सेनाओं के बीच एक बार हिंसक झड़प भी हो चुकी है। चीन, भारत को लगातार घेरने की कोशिश कर रहा है और इसके तहत वह भारत के आसपास के देशों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है फिर चाहे वो पाकिस्तान हो, श्रीलंका या मालदीव। चीन, पाकिस्तानी सेना को मजबूत करने में भी मदद कर रहा है, जिसे साफ तौर पर भारत के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। वहीं पाकिस्तान के साथ कश्मीर के मुद्दे पर भारत के रिश्ते अभी भी तल्ख हैं और पाकिस्तानी सेना कई युद्धों में हारने के बाद भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े हुए है। ऐसे हालात में 11 मई 1998 की तारीख एक ऐसी तारीख है, जिसने आज तक हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को काफी हद तक नियंत्रण में रखा है। 

कैसे हुई भारत के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत

साल 1945 में पहली बार प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी होमी जे भाभा ने तत्कालीन बंबई में परमाणु भौतिकी के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की। टाईएफआर भारत का पहला परमाणु भौतिकी अनुसंधान संस्थान था। देश की आजादी के बाद भाभा ने तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू को सरकार में परमाणु ऊर्जा विभाग के गठन के लिए मना लिया और इसके निदेशक भाभा ही बने। शुरुआत में भारत का जोर परमाणु ऊर्जा से स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने पर जोर था, लेकिन पाकिस्तान के बार-बार आक्रमण और साल 1962 में चीन के हमले के बाद भारत सरकार ने गंभीरता से परमाणु शक्ति हासिल करने के बारे में सोचना शुरू किया। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान में जिस तरह से विदेशी ताकतों ने हस्तक्षेप किया, उससे भी तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने परमाणु कार्यक्रम में तेजी लाने का निर्देश दिया। 

आखिरकार 18 मई 1974 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के नेतृत्व में देश ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया। इसे ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया गया। परमाणु परीक्षण के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी दबाव का सामना करना पड़ा और कई देशों ने भारत पर कई प्रतिबंध लगाए। हालांकि अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत दुनिया का छठा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया। इसके बाद घरेलू स्तर पर राजनीतिक अस्थिरता और साल 1975 में आपातकाल लगने के चलते भारत की परमाणु गतिविधियां धीमी हुईं, जिसकी वजह से भारत को दूसरा परमाणु परीक्षण करने में दो दशक से भी ज्यादा का समय लग गया।  




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