1 घंटे पहलेलेखक: किरण जैन
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दीपक तिजोरी इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘टिप्सी’ को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। बतौर डायरेक्टर, ये उनकी आठवीं फिल्म है। दीपक ने साल 2003 में फिल्म ‘उप्स’ से निर्देशन की दुनिया में कदम रखा था। पिछले 20 सालों में उन्होंने कई फिल्मों का डायरेक्शन किया। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर किसी भी फिल्म ने कमाल नहीं दिखाया।
दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान, दीपक ने बताया कि उन्हें अपनी पिछली फिल्मों से काफी उम्मीदें थी लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों के असफल होने से वे काफी दुखी हुए। हालांकि, वे अपनी कोशिश जारी रखेंगे। इंटरव्यू के दौरान, दीपक ने अपनी प्रोफेशनल लाइफ से जुड़ी कई दिलचस्प बातें शेयर की।पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:
सिचुएशन सही नहीं, ऑडियंस थिएटर नहीं जा रही
जब भी मेरी फिल्म रिलीज होती है, नए बच्चे के पैदा होने वाली फीलिंग आती है हालांकि इस बार नर्वसनेस थोड़ी ज्यादा है। सिचुएशन सही नहीं है। पिछले कुछ समय से ऑडियंस थिएटर नहीं जा रही है। बड़े बजट और A-लिस्टर एक्टर्स होने के बावजूद, थिएटर में फिल्में नहीं चल रहीं। 90 के दशक में, हमारी फिल्में कभी सिल्वर जुबली तो कभी गोल्डन जुबली मनाती थीं। थिएटर में 25 से 50 हफ्तों तक फिल्में चलती थीं। अब तो एक हफ्ता भी चल जाए तो प्रोड्यूसर के लिए बड़ी बात है।
अच्छी बात ये भी है कि आज के प्रोड्यूसर पहले ही कुछ राइट्स बेच देते हैं। म्यूजिक राइट्स, ओटीटी प्लेटफॉर्म राइट्स को ध्यान में रखकर, वे 60-70 प्रतिशत फिल्म रिलीज के पहले कमा लेते हैं। कुलमिलाकर, प्रोड्यूसर के लिए रिस्क का मार्जिन थोड़ा कम हुआ है। हमारी फिल्म तो बहुत छोटी है। लेकिन कंटेंट काफी अच्छा है। हमने बहुत मेहनत की है। उम्मीद करता हूं कि ऑडियंस हमारी मेहनत की कदर करके थिएटर जाए और फिल्म देखें।
फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ का कंटेंट बहुत अच्छा था
मैंने अपने हिसाब से कई अच्छी फिल्में बनाई थीं, दुर्भाग्यवश, वे नहीं चली। बतौर डायरेक्टर, मेरी पिछली फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ का कंटेंट बहुत अच्छा था। लेकिन बॉक्स-ऑफिस पर नहीं चली। इससे पहले मैंने सनी देओल और अर्जुन रामपाल के साथ ‘फॉक्स’ बनाई थी। वह फिल्म भी फ्लॉप हुई। जाहिर है निराशा तो होगी ही। लेकिन, मैंने हार नहीं मानी। अपनी कोशिश जारी रखूंगा।
अमिताभ बच्चन ने भी तो कई फ्लॉप फिल्में दी थी
अमिताभ बच्चन साहब को अपना इंस्पिरेशन मानता हूं। उन्होंने एक्टर्स को लेकर एक बात कही थीं- ‘एक्टर्स को कभी अपने काम की हिट या फ्लॉप से तुलना नहीं करना चाहिए। सालों बाद यदि अपना काम देखें, तो उस पर रिग्रेट नहीं होना चाहिए।’ मैं उनकी इस बात को फॉलो करता हूं।
अमिताभ बच्चन ने अपने हर काम में 100% दिया। इसके बावजूद, शुरुआत में उन्होंने कितनी फ्लॉप फिल्में दीं। उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही थीं। फिर वे हिट हो गए। जब इतने बड़े दिग्गज की इतनी फिल्में फ्लॉप हो सकती हैं तो हम क्या हैं? मैं उन्हीं की राह पर चल रहा हूं।
फिल्म इंडस्ट्री में ग्रुप होते हैं
आज इंडस्ट्री में ग्रुप को लेकर बहुत बातें होती हैं। चर्चा होती है कि करण जौहर का अपना ग्रुप है, वहीं यशराज का अपना। अपने ग्रुप मेंबर्स को ही वे काम देते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि हमारे दौर में भी ग्रुप हुआ करते थे। छोटा ग्रुप हुआ करता था। ये सिलसिला ब्लैक एंड वाइट के जमाने से चला आ रहा है।
मैंने सुना है कि उस वक्त भी एक्टर्स पूछते थे कि उनके को-एक्टर कौन होंगे? यदि कोई एक्टर की किसी से नहीं बनती तो वे मना कर देते थे। इसलिए हर प्रोडक्शन हाउस की अपनी एक पसंदीदा टीम होती थी। वे ज्यादातर उन्हीं को कास्ट करते ताकि फिल्म की शूटिंग अच्छे से निपटे। मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगता।